परम ब्रह्म श्री गौरांग महाप्रभु के प्राकट्य दिवस पर हुआ महाभिषेक,श्रद्धाभाव से मना गौर पूर्णिमा महोत्सव
पॉच कुंतल फूलों से खेली गई होली, दिखा ब्रज धाम सा नजारा
फोटो चैतन्य महाप्रभु अभिषेक करते पंडित मनुपुत्र दास
फोटो रंग-बिरंगे खुशबूदार फूलों से होली खेलते श्रद्धालु
इटावा। श्री श्री गौर निताई परिवार के तत्वाधान में पक्का तालाव स्थित सत्संग स्थल पर गौर पूर्णिमा महामहोत्सव श्रद्धाभाव के साथ उल्लासमय वातावरण में मनाया गया। प्राकट्य दिवस पर चैतन्य महाप्रभु का महाभिषेक किया गया और भक्तों के द्वारा हरिनाम संकीर्तन के बीच जमकर पॉच कुंतल फूलों की होली खेली गई। पक्का तालाव के किनारे साक्षात व्रजधाम सा नजारा दिखाई दिया । बधाई व होली गीतों पर भी श्रद्धालु जमकर झूमें।
फागुन मास की पूर्णिमा पर चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य हुआ था इसीलिए इसे गौर पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। सबसे पहले पंडित मनुपुत्र दास ने पंचामृत, फलों के रस नारियल पानी व दिव्य औषधियो से विधि विधान के साथ चैतन्य महाप्रभु का महाभिषेक किया इसके बाद भगवान का आकर्षक श्रंगार किया गया। भगवान के प्राकट्य उत्सव को लेकर कार्यक्रम स्थल को फूलों व गुब्बारों से सजाया गया था। भक्तों के द्वारा विभिन्न वाद्य यंत्रों के बीच जमकर हरि नाम संकीर्तन किया। इस संकीर्तन में श्रद्धालु झूमते रहे। इसके साथ ही भजन कीर्तन के साथ होली गीत भी भक्तों के द्वारा प्रस्तुत किए गए। भक्तों ने भगवान चैतन्य महाप्रभु के साथ जमकर फूलों व गुलाल की होली भी खेली। वाद में श्रद्धालुओं ने एक दूसरे को अवीर गुलाल लगाकर जमकर फूल बरसाए। पंडित मनु पुत्र दास ने भगवान कृष्ण के स्वरूप में सजे कलाकार के साथ भक्तों के ऊपर खूब फूल बरसाए और चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य उत्सव की खुशी में फल फूल मेवा मिठाई व अन्य सामानों की जमकर लुटाई भी की, हर कोई भक्त लुटाई का सामान लेने के लिए आतुर दिखाई दिया। कार्यक्रम स्थल फूलों से पटा रहा।कार्यक्रम के संपन्न होने पर भक्तों ने महाप्रसाद ग्रहण किया।
पंडित मनु पुत्र दास ने उपस्थित भक्तों को भगवान चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य का महत्व बताते हुए कहा कि इस कलिकाल में हरिनाम संकीर्तन का प्रचार प्रसार करने के लिए भगवान का प्राकट्य फाल्गुन पूर्णिमा पर हुआ था इसी लिए गौर पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है ।भगवान का रंग सुनहरा होने के कारण उन्हें गौरांग महाप्रभु भी कहा जाता है उनके माता-पिता ने उनका नाम निमाई रखा क्यों किभगवान का जन्म घर के आंगन में एक नीम के पेड़ के नीचे हुआ था।उन्होंने बताया कि चैतन्य महाप्रभु ने गोपियों के द्वारा भगवान से जो प्रेम किया गया था उसका भी अनुभव किया था। हरि नाम संकीर्तन भजन तीर्थों से भी अधिक पावन तीर्थ कहा गया है जिससे जीवो का उद्धार बड़े सहज भाव से हो जाता है सभी को अपने उद्धार के लिए हरिनाम संकीर्तन करना चाहिए।
रिपोर्ट चंचल दुबे इटावा