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यमुना तट के निकट स्थित महाभारतकालीन काली वाहन मंदिर


इटावा के गजेटियर में इसे काली भवन का नाम दिया गया है।यमुना के तट के निकट स्थित यह मंदिर देवी भक्तों का प्रमुख केंद्र है। इष्टम अर्थात शैव क्षेत्र होने के कारण इटावा में शिव मंदिरों के साथ दुर्गा के मंदिर भी बड़ी संख्या में हैं।

इटावा में मां काली का एक ऐसा मंदिर है जिसके बारे मान्यता है कि यहां महाभारत काल का अमर पात्र अश्वत्थामा आकर सबसे पहले पूजा करते हैं. यह मंदिर इटावा मुख्यालय से सिर्फ 5 किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है. इस मंदिर का नवरात्रि के मौके पर खासा महत्व हो जाता है. इस मंदिर में अपनी अपनी मनोकामना को पूरा करने के इरादे से दूर दराज से भक्तगण आते हैं. काली वाहन मंदिर में आज तक इस बात का पता नहीं लग सका है कि रात के अंधेरे में जब मंदिर को साफ कर दिया जाता है और जब तड़के गर्भगृह खोला जाता है. उस समय मंदिर के भीतर ताजे फूल मिलते हैं जो इस बात को साबित करता है कोई अदृश्य रूप में आकर पूजा करता है. कहा जाता है कि महाभारत के अमर पात्र अश्वश्थामा मंदिर में पूजा करने के लिये आते हैं.

यमुना किनारे बना है मंदिर

इटावा के गजेटियर में इसे काली भवन का नाम दिया गया है. यमुना के तट के निकट स्थित यह मंदिर देवी भक्तों का प्रमुख केंद्र है. इष्टम अर्थात शैव क्षेत्र होने के कारण इटावा में शिव मंदिरों के साथ दुर्गा के मंदिर भी बड़ी संख्या में हैं. महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती की प्रतिमायें हैं. इस मंदिर में स्थित मूर्ति शिल्प 10वीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य का है. वर्तमान मंदिर का निर्माण बीसवीं शताब्दी की देन है. मंदिर में देवी की तीन मूर्तियां हैं- महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती. महाकाली का पूजन शक्ति धर्म के आरंभिक रूवरूप की देन है।

इटावा में मां काली का एक ऐसा मंदिर है जिसके बारे मान्यता है कि यहां महाभारत काल का अमर पात्र अश्वत्थामा आकर सबसे पहले पूजा करता है। यह मंदिर इटावा मुख्यालय से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है। इस मंदिर का नवरात्रि के मौके पर खासा महत्व हो जाता है। इस मंदिर में अपनी अपनी मनोकामना को पूरा करने के इरादे से दूर दराज से भक्त गण आते हैं। काली वाहन मंदिर के मुख्य महंत राधेश्याम द्विवेदी का कहना है कि काली वाहन नामक इस मंदिर का अपना एक अलग महत्व है। वे करीब 42 साल से इस मंदिर की सेवा कर रहे हैं लेकिन आज तक इस बात का पता नहीं लग सका है कि रात के अंधेरे में जब मंदिर को साफ कर दिया जाता है। तड़के गर्भगृह खोला जाता है। उस समय मंदिर के भीतर ताजे फूल मिलते हैं जो इस बात को साबित करता है कोई अदृश्य रूप में आकर पूजा करता है। कहा जाता है कि महाभारत के अमर पात्र अश्वश्थामा मंदिर में पूजा करने के लिये आते हैं।

रिपोर्ट चंचल दुबे इटावा

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