ज़िले इटावा के वर्तमान जिलाधिकारी शुभ्रांत कुमार शुक्ला ने सख़्त प्रशासनिक कार्यशैली के ज़रिए स्पष्ट उदाहरण से दिखाया है कि कैसे समयबद्धता, पारदर्शिता और तात्कालिक कार्रवाई से काम में तेज़ी लाई जा सकती है।

🚀 प्रमुख पहल और रणनीतियाँ
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VIP कल्चर का अंत, समय का पाबंद वातावरण
कार्यालय में एसी बंद किए गए, VIP गेट हटाया गया और वे खुद तथा अधिकारियों को समय पर कार्यालय में आने के सख्त निर्देश दिए। इससे दफ़्तर में औपचारिकता कम हुई और कार्यकुशलता बढ़ी -
24 घंटे में 20 घंटे काम का तंत्र
ज़िलाधिकारी ने अधिकारियों को “समयानुकूल” लक्ष्यों के अनुसार बांटा और नियमित समीक्षा बैठकों में कार्य प्रगति, शिकायतों का निस्तारण व फीडबैक की गुणवत्ता पर व्यक्तिगत रूप से निगरानी रखी । -
जनता की समस्याओं का तत्काल समाधान
जिलाधिकारी ने खुद हर शिकायत पर सुनवाई शुरू की, कोर्ट रूम जनता के लिए खुली रखी और यह सुनिश्चित किया कि शिकायतों का समाधान त्वरित रूप से हो -
विकास योजनाओं की समयबद्ध क्रियान्वयन
उन्होंने ब्लॉक‑वार खेल मैदान, हाट‑बाजार, आंगनवाड़ी केंद्र, जेल निरीक्षण, जमीन चिन्हांकन, जल‑जीवन मिशन, PM-कुसुम जैसी कई योजनाओं के लक्ष्यों को निश्चित समय में पूरा करने के निर्देश दिए ।
भू‑परीक्षण, फीडबैक आधारित सुधार और गरीबी उन्मूलन
आईजीआरएस शिकायतों पर गुणवत्ता जांच, भू‑खसरा निरीक्षण, गरीबी खत्म करने के लिए लक्ष्य निर्धारण और वर्मी‑कम्पोस्ट जैसी पहल पर ज़ोर दिया गया ।

📈 प्रभाव
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शुरू में सुस्त और बड़े‑बड़े अधिकारी अब समय के पहले आ रहे हैं।
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आम जनता की शिकायतों को प्रशासन द्वारा पहले जैसा झिझक नहीं, बल्कि खुलकर सुलझाया जा रहा है।
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प्रशासनिक कार्यप्रणाली में नियुक्ति, पर्यावरण, भ्रष्टाचार जैसे व्यापक सुधार पर तेज़ी से काम हो रहा है
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🚩 निष्कर्ष
शुभ्रांत कुमार शुक्ला ने अपनी “राइट टाइम पर कार्य” रणनीति के ज़रिए साबित कर दिया कि:
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समय का पाबंद अनुशासन,
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सीधा संवाद और फीडबैक, तथा
नियमित समीक्षा और जवाबदेही,
प्रशासनिक प्रणाली को मात्र 24 घंटों में तक़रीबन 20 घंटे जीवंत और उत्तरदायी बना सकते हैं।
रिपोर्ट चंचल दुबे इटावा
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